Tuesday, September 16, 2008

सैटेलाइट चैनलों के मालिकों, समय न करेगा माफ !


आलोक नंदन
सऊदी अरब के मुख्य न्यायाधीश शेख सालिह अल लोहैदान मीडिया के कंटेंट पर हत्थे से गरम हैं। उन्होंने सैटेलाइट चैनलों के मालिकों को, जो अनैतिक और आपत्तिजनक कार्यक्रम दिखाते हैं, मार देने की बात कही है। सऊदी अरब के कानून भारत में नहीं लागू हो सकते, यहां डेमोक्रेसी है। लेकिन लोहैदान की बात से साफ है कि भारत में भी मीडिया को कड़ाई से रोकने की जरूरत है। समाज को गंदा करने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, समाज के एक वर्ग की यह आम राय है।
इस आम राय को 'जनरल विल' के साथ जोड़कर देखने पर लोहैदान की बात भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक हो जाती है। सरकारी रेडियो पर जब एक श्रोता के सवाल के जवाब में लोहैदान ने कहा, ''इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसे कार्यक्रमों में सिर्फ हैवानियत होती है, ऐसी चीजों को बढ़ावा देने वाले को यदि किसी और तरीके से नहीं रोका जा सकता तो उन्हें मार देना चाहिए।''
इस बातचीत की आडियो क्लिप धड़ाधड़ बंट रही है, और लोग उसे इंज्वाय कर रहे हैं।
प्रश्न उठता है कि अनैतिक कार्यक्रम का मापदंड क्या है? जो समाज को गंदा करे, उसे पतन की ओर ले जाए, लोगों में भय का संचार करे, उनकी खोपड़ी पर खौफ की बरसात कर दे, कम उम्र में बच्चों को सेक्स की ओर ढकेल दे...आदि। टीआरपी की दौड़ को भी परखना होगा कि इस पर अव्वल आने वाले कार्यक्रम नैतिकता और अनैतिकता के कितने करीब हैं। भारत में मौत की सजा तो बेमानी बात है, लेकिन मीडिया की भूमिका पर एक सार्थक परिकल्पना के साथ बढ़ा जा सकता है। मीडिया एक साधन है, साध्य नहीं। इसलिए इसकी भूमिका पर गहन विचार की जरूरत है, शेख सालिह अल लोहैदान से ही शुरू किया जा सकता है।

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