Tuesday, September 30, 2008

चंबल का दूसरा चेहरा भी है..

चंबल के बीहड़ों की जब भी चर्चा चलती है तो अनायास ही बागी सरदार मान सिंह से शुरू हुई एक परंपरा लाखन सिंह, रूपा, पुतली बाई से चलकर मोहर सिंह, माधव सिंह,मलखान सिंह से होती हुई निर्भय गुर्जर तक पहुंचकर थोड़ा रुकती है और भविष्य के नामों के लिए बांहें फैलाने लगती है। मगर चंबल की यह घाटी महर्षियों की तपोभूमि और क्रंतिकारियों तथा कलाकारों की साधना स्थली रही है, यह बात दुर्भाग्य से हर बार अचीन्ही रह जाती है। पौराणिक गाथाओं की आभा से दीप्त-प्रदीप्त महर्षि भिंडी ( जिनके नाम से भिंड नगर बसा) और गालव ( जिनके नाम से ग्वालियर नगर बसा) की तपःस्थली के ही पुण्य-प्रसून थे-संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा। रायरू गांव की गूजरी, जो आगे चलकर राजा मानसिंह की रानी मृगनयनी बनती है,जिसने अपने पराक्रम से यवन सेना को पराजित करके तोमर वंश की यशःगाथा को इतिहास में दर्ज कराया था, वह इसी चंबल की माटी की बेटी थी। इसी चंबल की माटी के पुत्रों को बागी संबोधन का क्रांतिकारी चेहरा देनेवाले मैनपुरी षड्यंत्र कांड के पं.गैंदालाल दीक्षित ने मई गांव में ही बैठकर क्रांति का ताना-बाना बुना था और उनके शिष्य काकोरी कांड के महानायक पं. रामप्रसाद बिस्मिल (जिनके बाबा तंवरघारःअंबाह के थे ) ने भदावर राज्य के पिनाहाट और होलीपुरा में फरारी के दिनों में मवेशी चराते हुए मनकी तरंग और कैथराईन-जैसी कृतियों का सृजन किया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की जब पूरे देश में लौ बुझने लगी थी तो चंबल और यमुना के दोआब में रूपसिंह और निरंजन सिंह ने तात्याटोपे और शाहजादा फिरोजशाह को साथ लेकर फिरंगी सेना को धूल चटाते हुए यहां आजादी का परचम फहराकर एक नया इतिहास लिख दिया था। यहां के लोकगीत लंगुरिया और सपरी में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। और शस्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराना क्या हैसियत रखता है, यह बताना निहायत अनुत्पादक श्रम होगा। इस क्षेत्र के बुद्धिजीवी, चंबल के इस सांस्कृतिक आयाम को, जो कि दुर्भाग्यवशात् अचीन्हा ही रह जाता है,व्यापक फलक पर लाकर सर्वव्यापी बनाएं,इस सार्थक प्रयास की मैं उनसे पूरी शिद्दत के साथ उम्मीद करता हूं...एवमस्तु।।
विनयावनत
पं. सुरेश नीरव

Patrika further consolidates position in MP with Indore edition

After launching its Bhopal edition in May 2008, Hindi daily Patrika now seeks to further consolidate its position in Madhya Pradesh with its Indore edition. Arvind Kalia, NHM Marketing is confident that with the launch of the Indore edition, Patrika would become a promising option for advertisers to reach key consumers in the state.
He claimed that Bhopal and Indore accounted for 74 per cent of total ad spends on the state. A survey team of more than 450 members divided Indore into eight zones and conducted an extensive survey, which helped in charting out readers' preference, expectations, locate dissatisfaction areas and create brand awareness. 4.25 lakh households and business establishments were contacted during the survey.
Based on the survey and research findings, Patrika's Indore edition is packed with new features, which differentiate the product from existing players in the market. The accent is clearly local.
BR Singh, General Manager, Circulation, Patrika, informed that an army of sales personnel had been employed. He claimed that Patrika's entry in Madhya Pradesh had resulted in competitor sliding prices, throwing new product after product.
Promotional activities for the Indore edition include the full gamut of media covering not just the conventional BTL and ATL activities, but also reaching consumers through more interactive and innovative channels establishing connect at multiple levels.

Sunday, September 28, 2008

मुसलमान नौजवानों, भागो मत दुनिया बदलो

-अफलातून भाई का आरकुट पर संदेश के अंश
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई राजनैतिक नहीं होनी चाहिए । मुख्यधारा की राजनीति की कमियों और कुछ नेताओं के अललटप्पू बयानों के कारण उनके दिमाग में यह ग़लतफ़हमी है । ‘दिल्ली के जामिया नगर में हुई पुलिस मुठभेड़ फर्जी थी ‘ कई मुस्लिम समूह और मानवाधिकार संगठन यह मान रहे हैं । इस सन्दर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा न्यायमूर्ति रामभूषण मल्होत्रा द्वारा दिया गया एक फैसला महत्वपूर्ण है। रामभूषणजी नहीं चाहते कि उनके नाम के आगे न्यायमूर्ति लगाया जाए । चूँकि यह उनके द्वारा दिए गए फैसले की बात है इसलिए ‘न्यायमूर्ति’ लगाना उचित है। अपने फैसले हिन्दी में देने के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। उक्त फैसले में कहा गया था कि जब भी पुलिस ‘मुठभेड़’ का दावा करती है उन मामलों में (१) मृतकों के परिवार को पुलिस द्वारा सूचना दी जाएगी तथा (२) ऐसे सभी मामलों की मजिस्टरी जाँच होगी । यदि यह घटना जामिया नगर की जगह नोएडा में होती तो इन दोनों बातों को खुद-ब-खुद लागू करना होता।घटना की जाँच की माँग एक अत्यन्त साधारण माँग है तथा पूरी पारदर्शिता के साथ इसे पूरा किया जाना चाहिए ।
इन मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम समूहों से भी हम रू-ब-रू होना चाहते हैं । इतनी गम्भीर परिस्थिति में बस इतना संकुचित रह कर काम नहीं चलेगा । आतंकी घटनाओ और उसके तार देश के भीतर से जुड़े़ होने की बात पहली बार खुल के हो रही है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भारत के तमाम अमनपसंद मुसलमानों को भुगतना पड़ रहा है । इन घटनाओं के बाद संकीर्ण सोच वाले साम्प्रदायिकमूह हर मुसलमान को गद्दार बताने का अभियान शुरु कर चुके हैं, आगामी लोकसभा निर्वाचन में वोटों के ध्रुवीकरण की गलतफहमी भी वे पाले हुए हैं । आतंकवाद से मुकाबले की नाम पर क्लोज़ सर्किट टेवि जैसे करोड़ों के उपकरण खरीदें जायेंगे और इज़राइली गुप्त पुलिस ‘मसाद’ से तालीम दिलवाई जाएगी । कैनाडा और अमेरिका मे रहने वाले अनिवासी भारतीयों से पूछिए कि पैसे कि ताकत पर कैसे यहूदी लॉबी नीति निर्धारण में हस्तक्षेप करती है ? इन सब से गम्भीर और नुकसानदेह बात यह है कि मेधावी तरुण यदि ‘आतंक’ में ग्लैमर देखने लगें तो उन्हें उस दिशा से रोकने और अन्याय की तमाम घटनाओं के विरुद्ध राजनैतिक संघर्ष से जोड़ने का काम कौन करेगा ? यह काम मुख्यधारा की राजनीति से जुड़ा कोई खेमा शायद नहीं करेगा।
एक मुस्लिम महिला पत्रकार और कवयित्री ने अपने चिट्ठे पर लिखा , ‘कि दिल्ली का बम काण्ड करने वाले जरूर हिन्दू रहे होंगे’। अत्यन्त सिधाई से उन्होंने यह बात कह दी। मैंने यह देखा है कि शुद्ध असुरक्षा की भावना से ऐसी बातें दिमाग में आती हैं ।‘काम गलत है, इसलिए जरूर हमारे समूह का व्यक्ति न रहा होगा’ - यह मन में आता होगा । राष्ट्रीय एकता परिषद , सर्वोच्च न्यायालय और संसद के सामने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की कसमे खाने वाली जमात ने जब उस कसम को पैरों तले मसलने में अपना राष्ट्रवाद दिखाया तब किसी हिन्दू के दिमाग में क्या यह बात आई होगी कि जरूर यह काम हमारे समूह से अलग लोगों ने किया होगा ? जिन्हें लगता है कि "वह काम सही था और इसीलिए हमारे समूह ने किया" - उन राष्ट्रतोड़क राष्ट्रवादियों से हमे कुछ नहीं कहना , उनके खतरनाक मंसूबों के खिलाफ़ लड़ना जरूर है ।
मैंने आतिफ़ का ऑर्कुट का पन्ना पढ़ा है जिसमें वह फक्र के साथ एक फेहरिस्त देता है कि किन शक्सियतों के आजमगढ़ से वह ताल्लुक रख़ता है - ……. राहुल सांकृत्यायन , कैफ़ी आज़मी । चार लोगों को जिन्दा जमीन में गाड़ देने वाले भाजपा नेता (पहले सपा और बसपा में रहा है) रमाकान्त यादव या भारत की सियासत के सबसे घृणित दलाल अमर सिंह का नाम नहीं लिखता ! ऐसा कोई तरुण घृणित , अक्षम्य आतंकी कार्रवाई से जुड़ता है , उन कार्रवाइयों की तस्वीरें उतारता है तो निश्चित तौर पर इसकी जिम्मेदारी मैं खुद पर भी लेता हूँ । अन्याय के खिलाफ़ लड़ने का तरीका आतंकवाद नहीं है । आजमगढ़ के शंकर तिराहे के आगे , मऊ वाली सड़क पर प्रसिद्ध पहलवान स्व. सुखदेव यादव के भान्जे के मकान में समाजवादी जनपरिषद के दफ़्तर के उद्घाटन के मौके पर आजमगढ़ के सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और फोटोग्राफर दता ने राहुलजी का लिखा गीत दहाड़ कर गाया था - ‘ भागो मत ,दुनिया को बदलो ! मत भागो , दुनिया को बदलो ‘ । आजमगढ़ के तरुणों से यही गुजारिश है ।
साभार--विनित उत्पल

इस्लाम और इंसानियत खतरे में


-अबरार अहमद
मन अंदर ही अंदर मुझे कचोट रहा है। एक अरसे से। संभालने की कोशिश की एक आम आदमी की तरह। एक आम हिंदुस्तानी की तरह मगर रोक न सका खुद को। चाहे जयपुर धमाका हो या अहमदाबाद, यूपी के तमाम शहरों में बम फटे हों या दिल्ली को तबाह करने की नापाक कोशिश की गई हो हर बार दिल से एक आह जरूर निकली। एक पत्रकार होने के नाते भले ही रोया नहीं लेकिन इंसान होने के नाते आंखें नहीं मानीं। बेगुनाह लोगों को निशाना बनाने उनहें मारने और तबाही फैलाने का हक कोई भी धर्म किसी को नहीं देता। इस्लाम भी नहीं। इस बात को समझना होगा।
इंडियन मुजाहिददीन के नेटवर्क के खुलासे ने सबको चौंका दिया है। इस आतंकी फौज में जितने भी सदस्य शामिल हैं वह 16 से 30 साल के हैं। सब पढे लिखे और सभ्य परिवारों से हैं। इनके परिवार का कोई भी सदस्य अपराधी पृष्ठभूमि से नहीं। यह युवक भी पढे लिखे हैं और इनमें से कई उच्च शिक्षा हासिल कर रहे थे और सबसे अहम बात यह कि अब तक जीतने भी युवक पकडे गए हैं वह सभी मुसलमान हैं। और जो नाम सामने आ रहे हैं वह भी मुस्लिम ही हैं।
मैं खुद मुसलमान हूं और इस खुलासे से आहत हूं। मेरा मानना है कि अब वाकई में इस्लाम खतरे में है और इसे बचाने के लिए जेहाद की जरूरत है। वह कौन लोग हैं जो आपके बच्चों को बरगला कर आतंक की राह पर पहुंचा रहे है। क्या वजह है कि पढा लिखा मुसलमान इंसानियत का फर्ज भूलकर तबाही की राह पकड रहा है। वह कौन है जो इस्लाम को नेस्तानाबूद करने पर तूला है। जरूरत है तो अपने बच्चों को सही तालिम देने की। उन्हें समझाने की और इंसानियत का पाठ पढाने की ताकि हमारी अगली पीढी किसी नापाक हाथ की कठपुतली न बन सके। देश भर के मुसलमान भाईयों को अब जेहाद छेडनी होगी तभी इस्लाम को बचाया जा सकेगा तभी इंसानियत को बचाया जा सकेगा।
यह एक लंबी लडाई है। लेकिन इसकी शुरुआत आज से ही हो जानी चाहिए। अगर इस्लाम को बचाना है तो हमे अपनी अगली पीढी को सही राह दिखानी होगी। वह राह जो दिन की राह है। और यह जिम्मेदारी हमारे धर्म गुरुओं की है। जरूरत है कि वह आगे आएं और लोगों से इस बात कि अपील करें उन्हें सही राह दिखाएं।आतंकवाद के खिलाफ उलेमा आगे आए हैं लेकिन इस बात को एक सिस्टम के तहत लाना होगा। उन्हें धर्म का सही मकसद और इंसानियत का पाठ पढाने के लिए एक व्यवस्था बनानी होगी। आखिर यह इस्लाम के वजूद का मामला है। इंसानियत के वजूद का मामला है।

साभार - लफ्ज ब्लाग, अमर उजाला

Tuesday, September 23, 2008

बडे भाई निशीथ जोशी की कलम से


स्वर्गीय आपा और लाला भाई (मो माबूद ) के नाम जिनके बिना ये बेटा इतना बड़ा नहीं हो सकता था। आपकी बहुत यद् आती है। इंशा अल्लाह कभी तो मुलाकात होगी। वैसे तो आप हरदम मेरे साथ हो। कभी तहजीब के रूप में तो कभी दुआओं के ताबीज के रूप में। सिर्फ़ यही है मेरी जिंदगी की कमाई -------निशीथ

खौफ ------

रोक लो इन हवाओं को

मत आने दो शहर से

मेरे गांव की ओर

वरना मंगल मामा

हिंदू हो जाएगा

और रहमत चाचा

मुसलमान हो जाएगा

और रहमत चाचा मुसलमान.....


Tuesday, September 16, 2008

सैटेलाइट चैनलों के मालिकों, समय न करेगा माफ !


आलोक नंदन
सऊदी अरब के मुख्य न्यायाधीश शेख सालिह अल लोहैदान मीडिया के कंटेंट पर हत्थे से गरम हैं। उन्होंने सैटेलाइट चैनलों के मालिकों को, जो अनैतिक और आपत्तिजनक कार्यक्रम दिखाते हैं, मार देने की बात कही है। सऊदी अरब के कानून भारत में नहीं लागू हो सकते, यहां डेमोक्रेसी है। लेकिन लोहैदान की बात से साफ है कि भारत में भी मीडिया को कड़ाई से रोकने की जरूरत है। समाज को गंदा करने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, समाज के एक वर्ग की यह आम राय है।
इस आम राय को 'जनरल विल' के साथ जोड़कर देखने पर लोहैदान की बात भारतीय संदर्भ में प्रासंगिक हो जाती है। सरकारी रेडियो पर जब एक श्रोता के सवाल के जवाब में लोहैदान ने कहा, ''इसमें कोई शक नहीं है कि ऐसे कार्यक्रमों में सिर्फ हैवानियत होती है, ऐसी चीजों को बढ़ावा देने वाले को यदि किसी और तरीके से नहीं रोका जा सकता तो उन्हें मार देना चाहिए।''
इस बातचीत की आडियो क्लिप धड़ाधड़ बंट रही है, और लोग उसे इंज्वाय कर रहे हैं।
प्रश्न उठता है कि अनैतिक कार्यक्रम का मापदंड क्या है? जो समाज को गंदा करे, उसे पतन की ओर ले जाए, लोगों में भय का संचार करे, उनकी खोपड़ी पर खौफ की बरसात कर दे, कम उम्र में बच्चों को सेक्स की ओर ढकेल दे...आदि। टीआरपी की दौड़ को भी परखना होगा कि इस पर अव्वल आने वाले कार्यक्रम नैतिकता और अनैतिकता के कितने करीब हैं। भारत में मौत की सजा तो बेमानी बात है, लेकिन मीडिया की भूमिका पर एक सार्थक परिकल्पना के साथ बढ़ा जा सकता है। मीडिया एक साधन है, साध्य नहीं। इसलिए इसकी भूमिका पर गहन विचार की जरूरत है, शेख सालिह अल लोहैदान से ही शुरू किया जा सकता है।

Thursday, September 11, 2008

रंगबाज पूरबियों को ले डूबी रंगदारी

विजय शंकर पांडेय
दिल्ली के शातिर शोहदे अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पलते-बढ़ते हैं तो मुंबई के माफिया डॉन पूर्वी उत्तर प्रदेश (पूर्वाचल) की नर्सरी में आकार लेते हैं. यकीन मानिए, यही सच है. बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में स्वतंत्रता संग्राम की कमान संभालने वाले व उत्तरा‌र्द्ध में देश को नेतृत्व प्रदान करने वाले अपने उत्तम प्रदेश अर्थात उत्तर प्रदेश की इक्कीसवी सदी की शुरुआत में यही पहचान है. ग्लोबलाइजेशन के दौर में मेच्योरिटी की ओर बढ़ रहा है भारतीय लोकतंत्र. ऐसे में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए पूरबिया प्रोफेशनल क्रिमिनल कम पॉलिटिशियन जनतंत्र का नया मुहावरा गढ़ने में मशगूल हैं. मंडल-कमंडल के झंझावातों को झेल नई जमीन तलाश रहे पूर्वाचल के सामाजिक व्याकरण के सिलेबस में भी आमूल चूल परिवर्तन हुआ है. क्लासिकल सामंतवाद के रंगमंच पर सिर्फ पात्र बदले हैं, पटकथा वही है.हाल के दिनों के आपराधिक रिकार्डो पर गौर करें तो पता चलेगा कि पूर्वाचल के कई जिले अपराधियों के अभ्यारण्य में तब्दील हो चुके हैं. हर दूसरे-तीसरे दिन यहां कोई न कोई टपका दिया जाता है. गैंगवार के मामले में भी यहां के कई शहर अब मुंबई व सिंगापुर से सीधे ताल ठोक सकते हैं. सर्व विद्या की राजधानी मोक्षदायिनी काशी अब अपने रंगदारों के बूते पहचानी जा रही है. कहते हैं भोले नाथ की नगरी काशी के वासी मिजाज से भौकाली होते हैं. जेब में फुटी कौड़ी न भी हो तो रंगबाजी से बतियाना उनकी फितरत है. किसी जमाने में पूरबिये किसी दिग्गज राजनेता, साहित्यकार या किसी शिक्षाविद् के नाम की धौंस जमाया करते थे. अब किसी न किसी माफिया डॉन तक पहुंच की हेकड़ी बघारते हैं. अंडरव‌र्ल्ड में बढ़ रही उसकी साख किसी भी भले मानुष के पेशानी पर बल डाल सकता है. वैसे यह अंदर की बात है. सच तो यह है कि रंगदारी ने रंगबाज पूरबियों का बंटाधार कर दिया है.अपने मिजाज की त्रासदी झेल रहा है पूर्वाचल. प्राकृतिक तौर पर अपराधी न होते हुए भी अपने अह्म की तुष्टि के लिए पूरबियों की नई पीढ़ी यदा-कदा कानून हाथ में लेने से गुरेज नहीं करती. इसके बाद कुछ मनबढ़ लंबे हाथ मारने से भी नहीं चुकते. ऐसे ही कुछ युवा अपराध की दलदल में फंसते जा रहे हैं तो कुछ खुद को मॉडर्न दिखाने की ललक में अपराधियों के मोहरे बनते जा रहे हैं. ये रंगबाज दीमक की तरह धीरे-धीरे पूर्वाचल की संपन्नता व व्यापार को चाटते जा रहे हैं. नतीजा आपके सामने है.पूर्वाचल में और उसमें बढ़ते अपराध कोढ़ में खाज का काम कर रहे हैं. हत्या, लूट, रंगदारी, अपहरण व बलात्कार सरीखे वारदातों की बढ़ती तादाद ने पूर्वाचल का इतिहास-भूगोल ही नहीं, अर्थशास्त्र को भी डावांडोल कर दिया है.इस साल के शुरुआत के तीन महीनों में हत्या व लूट की तकरीबन दर्जन भर वारदातों को अकेले वाराणसी शहर में ही अंजाम दिया जा चुका है. गुजरे साल का लेखा-जोखा तो गोया खून से ही लिखा गया था. हत्या, लूट व अपहरण सरीखी वारदात अब पूर्वाचल के लिए एक आम बात है. ऐसी विषम परिस्थितियों में कोई उद्योगपति या व्यवसायी यहां आकर कारोबार करने के विषय में भला कैसे व क्यों सोचेगा? कई कारणों से पूर्वाचल की अपनी महत्ता है. मगर जिन विषम परिस्थितियों से मुखातिब है पूर्वाचल, दयनीय कानून-व्यवस्था उसकी सारी उपलब्धियों पर पानी फेरने के लिए काफी है. जान है तो जहान है. यहां के समर्थ उद्योगपति व व्यवसायी पलायन को लाचार हैं. जो किन्ही कारणों से पलायन नहीं कर सकते, वे भी पुलिस व प्रशासन के भरोसे नहीं, उन आततायियों के रहमोकरम पर ही रोजी-रोटी कमा रहे हैं, जो उनकी सुपारी हाथ में लिए घूम रहे हैं.माफिया डॉन सुभाष ठाकुर ने पिछले दिनों एक इलेक्ट्रॉनिक चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा था कि आपराधिक प्रतिभाओं के लिहाज से उर्वरा है पूर्वाचल की धरती. सबसे बड़ी बात यहां के युवा अपराधी कम से कम अपने आका से विश्वासघात नहीं करते. यही उनकी पूंजी है. इसीके बूते अंडरव‌र्ल्ड में इस तबके के पूरबियों की धाक है. वैसे पूर्वाचल में बढ़ रहे अपराध का एक अहम कारण भयंकर बेरोजगारी भी है. आईपीएस सुजीत पांडेय ने हाल में दिए एक इंटरव्यू में कहा कि बेरोजगारी पूर्वाचल में बढ़ते अपराध का बुनियादी कारण है. मिजाज से रंगबाज व भौकाली होने के कारण इस क्षेत्र के युवकों का एक तबका व्हाइट कलर जॉब की ताक में रहता है. जाहिर है सभी की अपेक्षाएं पूरी नहीं हो सकती. ऐसी हालत में वे छोटे-मोटे व्यवसाय की बजाय शॉर्टकट रास्तों के जरिए फटाफट अपना लक व लुक दोनों बदलना चाहते हैं.उदार अर्थव्यवस्था व भूमंडलीकरण की बदौलत काशी व उसके आसपास के शहरों में कमाने के जरिए भले न बढ़े हों, सपने व महत्वकांक्षाएं जरूर युवा पीढ़ी के दिल-दिमाग में पैठ बनाईं हैं. इन्हें हासिल करने की ललक के चलते लोगों के खर्चे बेहिसाब बढ़े हैं. संबंधित तबका इन खर्चो को पूरा करने के लिए बेजां हरकतें करने से बाज नहीं आता. गलत संगत में पड़कर कई भले घरों के लड़के घोड़े पर उंगलियां टिकाए यायावरी जीवन बिताने को मजबूर हैं. महज ब्रांडेड कपड़े-जूते, मोबाइल व थोड़े बहुत नोटों के लालच में कई लड़के सत्या ब्रांड शूटर्स बन गए हैं. अब उनके पास सब कुछ है, सिवाय चैन की नींद के. रही सही कसर पूरी कर देता है पड़ोसी राज्य बिहार. न सिर्फ असलहे अपितु कोच भी मुहैया करवाता है बिहार. जरूरत पड़ने पर पुलिस से छिपने के लिए वहां शरण भी उपलब्ध है. वैसे ऐसे तत्वों को संरक्षण प्रदान कर अपना उल्लू सीधा करने से पूर्वाचल के राजनेता भी बाज नहीं आते. जी हां, पूर्वाचल की बिगड़ी तबीयत के लिए कई कारक ग्रह मौजूद है. विडंबना तो यह है कि काशी समेत समूचे पूर्वाचल की तीमारदारी का अहम दायित्व जिन्हें सौंपा गया है, उनमें से कई जनप्रतिनिधियों का टांका सीधे अंडरव‌र्ल्ड से जुड़ा है. जो सीधे नहीं जुड़े हैं, वे भी घुमा फिरा कर थोड़ी बहुत मोंगाबो को खुश करने की जुगत भिड़ाने की हैसियत रखते हैं. जाहिर है ऐसे हालात में काशी की हिफाजत तो इसके शाश्वत कोतवाल (भैरो बाबा) ही कर सकते हैं.कोलकाता, दिल्ली, मुंबई हो या मारीशस व त्रिनिदाद, हाड़तोड़ मेहनत के लिए अभ्यस्त पूरबिए जहां भी गए वहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन उभरे. लगभग दस साल पहले नई दिल्ली के मावलंकर हाल में अखिल विश्व भोजपुरी सम्मेलन के सालाना जलसे को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने कहा था महानगर ही नहीं, बीहड़ में भी आर्थिक तौर पर स्वावलंबी हो परचम लहराने का माद्दा भोजपुरी भाषियों में है, मगर दीप तले अंधेरे की कहावत चरितार्थ करता है इनका अपना घर, अपना इलाका. क्या वजह है कि यहां की प्रतिभाएं अन्यत्र रंग दिखाती हैं, जबकि यहां लाचार दिखती हैं? ये सवाल अब भी अनुत्तरित है.